Monday, April 9, 2018

बेनूर



दिल से दिल, यूँ मजबूर हो गया
गले लगाया जिसे,वो दूर हो गया।

मेरे खत को यूँ नीलाम कर दिया
किस्सा इश्क का मशहूर हो गया।

नहीं दिल का कोई, इसमे कसूर था
तेरा हुश्न ही इतना कोहिनूर हो गया।

हुश्न छलका आंखों से शबाब का
बिन पिये ही नशे में चूर हो गया।

अदाओं को मुहब्बत ,समझ बैठा
बस दिल का यही कसूर हो गया।

मेरी चाहत में ऐसा ही शुरुर था
जिसे चाहा वही मगरूर हो गया।

थोड़ी हुश्न को,हमने क्या रंग दिया
उन्हें तो हुश्न पे अपना,गुरुर हो गया।

कभी तो हुश्न को देखो,आईने में जरा
मुझसे दूर जाकर तू, तो बेनूर हो गया।

इश्क़ में तूने प्रियम,क्या लिख दिया।
इश्क़ में खुद ही तू,मसरूर हो गया।
©पंकज प्रियम
9.4.2018

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