Wednesday, April 4, 2018

रेप का रिश्ता!

रेप का रिश्ता!
हम लिखेंगे तो कहोगे, की  लिखता है
औरत का जिस्म ,क्या बादाम पिस्ता है?

कभी फांकता कच्चा,जैसे कि हो बच्चा
कभी तो धधकती आग में ही भुजंता है।

जब चाहो पीसकर तुम बना लो ठंडाई
जीभर गटककर ,उसे फिर यूँ फेंकता है।

नादान होती है,पर उसमें भी जान होती है
औरत का जिस्म क्या ?खिलौना होता है?।

जिस्म नहीं दिल के रस्ते रूह उतर जाए
पति -पत्नी का ऐसा ,खास रिश्ता होता है।

जोर जबरन का रिश्ता, नही होता प्रियम
रिश्ता तो विश्वासों की डोर से बंधा होता है

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